Daily Archives: April 10, 2014

इंसान को इंसान रहने दीजिए


इंसान को इंसान रहने दीजिए
इसे मज़हबोँ मेँ ना बाँटिए
ये जमीँ है, राम ‘औ’ रहीम की
इसे सरहदोँ मेँ ना बाँटिए

मंदिर की आरती मस्ज़िद मेँ जा मिले
मस्ज़िद की अज़ान को मंदिर मेँ पनाह मिले
दंगोँ मेँ खून से लथपथ शहर जो छोड़ आए है
उन लावारिस परिँदो को एक मुकम्मल जहाँ मिले

माना कि बोए कुछ ने यहाँ बीज धर्म-जात के
पर है गुज़ारिश आपसे कि नफरतेँ ना काटिए

इंसान को इंसान रहने दीजिए
इसे मज़हबोँ मेँ ना बाँटिए
ये जमीँ है, राम ‘औ’ रहीम की
इसे सरहदोँ मेँ ना बाँटिए

खिल जाए फूल प्यार के, हर एक बाग मेँ
संगीत भी नया मिले, कोयल की राग मेँ
चूल्हेँ मेँ रोटियाँ सिकेँ, हो इंसानियत का स्वाद
कोई घर अब और ना जले, रंजिशोँ की आग मेँ

उनकी मासूम मुस्कुराहट पे हमेशा प्यार आता है
बच्चोँ की हँसी, मज़हब की छलनी से ना छाँटिए

इंसान को इंसान रहने दीजिए
इसे मज़हबोँ मेँ ना बाँटिए
ये जमीँ है, राम ‘औ’ रहीम की
इसे सरहदोँ मेँ ना बाँटिए